कागज का इतिहास काफी पुराना है। हजारों साल पुराना हमारा इतिहास भी इसी के पन्नों पर दर्ज है। हैंडमेड पेपर का क्रैडिट भारत को जाता है। यहां तीसरी सदी ई.पू. के दौरान सैल्युलस फाइबर से कागज बनाया जाता था। 1938 में हरिपुरा कांग्रेस में महात्मा गांधी ने पेपरमेकिंग का तरीका सिखाया था..
चीन सभ्यताओं में जब लिपि की खोज की गई, तब हर चीज को पत्थरों, मिट्टी, पेड़ के तनों और धातु की शीट पर लिखा जाता था। 1800 ई. पू. में मिस्र में वर्णमाला का विकास हुआ। कागज पर लिखने की शुरुआत सबसे पहले मिस्र में ही हुई ।
कागज को अंग्रेजी में पेपर कहा जाता है । इस शब्द को मिस्र वासियों द्वारा लिखने के लिए प्रयोग किए जाने वाली ‘पेपीरस’ नामक वस्तु से लिया गया है। सबसे पहले मिस्र के लोगों ने पेपीरस पर लिखना शुरू किया था, जो नील नदी के किनारे उगने वाला ‘नरकट’ थी। वे ‘नरकट’ के अंदर का सफेद नर्म भाग निकाल लेते थे और पीट- पीट कर आड़ा – टेढ़ा बिछाकर मोटे कागज जैसा चपटा कर देते थे और फिर इस पर लिखा जाता था ।
ईसा से 200 साल पहले चीनी फटे-पुराने मछली के जाल से कागज बनाते थे । तीन सौ साल बाद एक चीनी विद्वान साई -लदुन ने इसकी बजाय पुराने कपड़ों के चिथड़ों से कागज बनाने की सोची। उसने इनमें पेड़ों की छाल व सन के रेशे मिलाकर कागज बनाया। कागज की खोज को चीन की चार सर्वश्रेष्ठ खोजों में से एक माना जाता है।
चीन से मध्य-पूर्व एशिया के देशों से होता हुआ कागज का प्रयोग 12वीं सदी में यूरोप पहुंच गया। काली मौत के नाम से मशहूर यूरोप में फैले प्लेग ने कागज बनाने वालों का काम बहुत बढ़ा दिया । प्लेग से मरे लाखों लोगों के कपड़े कोई छूता नहीं था । उनका अक्बार लग गया। ये सभी कपड़े इन्हें मिल गए। तभी प्रिंटिंग प्रैस का भी आविष्कार हुआ था ।
18वीं सदी में कागज बेहतर, सस्ता व जल्दी बनाने की खोज शुरू हुई। इसी के तहत रेने डी रामूर का ध्यान टिड्डों पर गया। उन्होंने देखा कि टिड्डे लकड़ी चबाकर उनकी लुगदी-सी बना लेते हैं, जो उनके घोंसले बनाने के काम आती है । वास्तव में कागज बनाने के लिए आज जो लकड़ी की लुगदी इस्तेमाल होती है वह रामूर की ही देन है । फिर कनेडियन खोजकर्ताओं चार्ल्स फैनर्टी और
ए. जी. केलर ने 1844 में खोज की कि कागज बनाने के लिए किस तरीके से लकड़ी को पीसा जा सकता है । उन्होंने कागज के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए मशीनें भी तैयार कीं। इससे न्यूजप्रिंट का उत्पादन संभव हो सका।
इसके बाद कई खोजकर्ताओं ने लकड़ी से फाइबर यानी रेशे अलग करने का काम किया, लेकिन मूल तरीका आज भी टिड्डों से लिया हुआ ही है, यानी लकड़ी, पानी व ऊर्जा से कागज बनाना । हम सिर्फ अलग- अलग तरह की लकड़ियां, रसायन व मशीनें इस्तेमाल कर रहे हैं, अलग-अलग कागज बनाने के लिए।
साधारण शब्दों में कागज के कई सारे नर्म फाइबर्स को एक के ऊपर एक जोर से दबाकर तैयार किया जाता है । आज कागज को मुख्य रूप से लिखने, प्रिंटिंग और पैकेजिंग के लिए प्रयोग किया जाता है ।
कागज की मोटाई को आमतौर पर कैलीपर में नापा जाता है, जो एक इंच के हजारवें हिस्से के रूप में दिया
जाता है। इस प्रकार एक कागज 0.07 मिलीमीटर से लेकर 0.18 मिलीमीटर तक हो सकता है। रीसाइकलिंग है जरूरी
पढ़ाई और जानकारी का जरिया भी कागज ही हैं । दुनियाभर की खबरों से आपको रूबरू कराने वाला अखबार भी कागज पर ही छपता है । कागज इतना महत्वपूर्ण होने के बावजूद अधिकतर बच्चे इसकी अहमियत नहीं जानते और पुस्तक के पन्ने फाड़ कर फेंक देते हैं। बच्चो, क्या आप जानते हैं कि कागज बनाने में लकड़ी का इस्तेमाल होता है। लाखों टन कागज बनाने में हर साल करोड़ों पेड़ काटे जाते हैं । इसलिए पुराने कागज को संभाल कर रखें और इसे रीसाइकलिंग के लिए दें। इससे हम पेड़ों को बचाकर पर्यावरण की रक्षा भी कर सकते हैं और प्रदूषण से भी बचाव होता है ।
- यदि एक टन कागज रीसाइकल किया जाए, तो 17 पेड़ों को कटने से बचाया जा सकता है और साथ ही 3000 गैलन पानी की भी बचत होती है। एक पेड़ एक साल में 60 पाउंड पॉल्यूटैंट्स को फिल्टर कर सकता
है । - रीसाइकलिंग पेपर नई लकड़ी से कागज बनाने की अपेक्षा 60 फीसदी कम एनर्जी का इस्तेमाल करता है ।
- पेपर प्रॉडक्ट्स दुनिया की सालाना कमर्शियल वुड हार्वेस्ट का 35 फीसदी इस्तेमाल करते हैं।
- दुनियाभर में अमेरिका और कनेडा पेपर और पेपर प्रॉडक्ट्स प्रोड्यूस करने वाले देश हैं ।
आज भी हैंडमेड पेपर्स उसी तरह बनाए जाते हैं, जैसे सदियों पहले बनाए जाते थे ।