सुख और मंगल फल देने वाली माता वैष्णों देवी का दरबार जम्मू स्थित कटरा से लगभग 14 किलोमीटर है। जम्मू देश के हर कोनो से रेल यातायात ही नहीं रोड, हवाईजहाज सभी तरह की यात्री सुविधाओं से जुड़ा है। यहां कटरा तक भक्त गण बस, निजी वाहन अथवा वायुमार्ग से पहुंच सकते हैं। कटरा में वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड में पंजीकरण करवाने के बाद माता के मंदिर की पैदल यात्रा शुरू होती है। मंदिर पहुंचने के मार्ग पहाड़ों के बीच से होकर जाता है। वर्तमान में श्राईन बोर्ड एवं सरकार द्वारा वैष्णों देवी मार्ग को काफी सुगम बना दिया गया है। रास्ते में ठहरने की व्यवस्था एवं खाने-पीने की चीजें की दुकानें रास्तेभर मिलती हैं। वैष्णों मंदिर तक रास्ते में खाने पीने की दुकानों के अलावा यात्रियों की यात्रा को सुलभ बनाने के उद्देश्य से जगह-जगह आराम करने व ठहरने के लिए भी ठिकाने हैं।
देवी भागवत पुराण के अनुसार महामाया देवी जगत की अधिष्ठात्री हैं। इन्होंने ही इस संसार का निर्माण किया है। यही भगवती महामाया देवी भगवान श्री विष्णु की माया बनकर उनके साथ रहती हैं। इन्हीं की प्रेरण से भगवान विष्णु के हाथों मधु एवं कैटभ नामक असुरों का वध हुआ । यह देवी ही जगत के कल्याण हेतु महालक्ष्मी, महाकाली एवं महासरस्वती रूप में प्रकट हुई। यह देवी आदि शक्ति कही जाती हैं। इन्हीं माहाशक्तियों की सम्मिलित शक्ति हैं माता वैष्णो देवी । माता वैष्णों देवी त्रिकुट पर्वत पर्वत पर तीनों महाशक्तियों के साथ निवास करती हैं। यहां माता का दरबार एक फा में है। यह समुद्र तल से लगभग 4800 फुट की ऊँचाई पर है। पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार यह गुफा अरबों वर्ष पुरानी है।
भूमिका मंदिर : भूमिका मंदिर कटरा से दो किलोमीटर आगे है। करीब सात सौ वर्ष पहले यहीं श्रीधर पंण्डित को माता वैष्णो ने कन्या के रूप में दर्शन दिया था। इसी पवित्र स्थान पर माता वैष्णो देवी ने भैरोनाथ समेत अन्य गांव वालों को भोजन कराया। यहीं से माता भैरोनाथ से हाथ छुड़ाकर दर्शनी द्वार के रास्ते अपने भवन की ओर दौड़कर भागी थी।
वैष्णो देवी वाणगंगा : वैष्णो देवी की यात्रा के मार्ग में वाण गंगा नामक स्थान आता है। यह वही स्थान है जहां माता वैष्णो देवी ने हनुमान जी को प्यास लगने पर अपने वाण से गंगा को प्रवाहित किया था। यात्रा के दौरान भक्त वाण गंगा के जल में स्नान करके अपनी थकान कम करते हैं। स्नान के बाद शरीर में नई ताजगी एवं उत्साह का संचार होता है जो भक्तों को पर्वत पर चढ़ने का हौसला देता है। वाण गंगा के जल में स्नान करने से कई प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं। वैष्णों देवी श्राइन बोर्ड की तरफ से यहां जन सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। कुछ श्रद्धालु भक्त यहां अपने बच्चों का मुण्डन संस्कार भी करवाते हैं। वर्तमान समय में वाण गंगा के जल में स्नान का आनन्द बरसात के मौसम में ही मिल पाता है। अन्य मौसम में वाण गंगा में जलाभाव रहता है ऐसे में यात्रियों को श्राइन बोर्ड द्वारा उपलब्ध कराये जाने वाले जल में स्नान करके संतुष्ट होना पड़ता है। यहां स्नान करने के बाद माता के भक्त जय माता दी का नारा लगाते हुए आगे की यात्रा शुरू करते हैं। वाण गंगा से पहाड़ की चढ़ाई शुरू हो जाती है। यहां मार्ग में दोनों तरफ दुकानें हैं जहां प्रसाद एवं खाने की चीजें हैं। दुकानों में छड़ी भी मिलती है। पहाड़ पर चढ़ने में सहुलियत के लिए यात्री छड़ी खरीदते हैं। लौटते समय यात्री चाहें तो दुकानदार को छड़ी वापस कर सकते हैं। दुकानदार छड़ी की आधी कीमत वापस कर देता है।
चरण पादुका : वाण गंगा से आगे बढ़ने पर मार्ग में चरण पादुका नामक स्थान आता है। इस स्थान पर एक शिला के ऊपर माता के चरण के निशान हैं। भैरो से हाथ छुड़ाकर भागते हुए माता यहीं शिला पर खड़ी होकर पीछे आते हुए भैरो को देखा था। माता के चरण चिन्ह के कारण यह स्थान पूजनीय है। यहां भक्त मात के चरणों का दर्शन करते हैं और अपनी यात्रा सफल बनाने की पार्थना करते हुए आगे बढ़ते हैं।
आदि कुमारी : चरण पादुका के आगे देवी आदि कुमारी का मंदिर है। भौरो को अपना पीछा करते हुए देखकर माता यहीं एक गुफा में छुपकर विश्राम करने लगीं। माता इस गुफा में नौ महीने तक छुपकर बैठी रहीं अत: इस फाको गर्भजून के नाम से जाना जाता है। यह गुफा संकरी है फिर भी मोटे से मोटे लोग निकल आते हैं।
और कभी-कभी पतले लोगों को भी इससे निकलने में परेशानी होती है। कहते हैं श्रद्धा एवं आस्था से इस गुफा में जो भी भक्त प्रवेश करता है उसे पुनः गर्भ में नहीं आना पड़ता है। इस स्थान पर गर्भजून में प्रवेश के लिए पर्ची कटवानी पड़ती है। भक्तों को गर्भ जून में प्रवेश पाने के लिए अपने नम्बर की लम्बी प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
हाथी मत्था : आदि कुमारी से आगे ढाई किलोमीटर तक पहाड़ पर खड़ी चढ़ाई है। इसकी आकृति हाथी के सिर जैसी होने के कारण इसे हाथी मत्था के नाम से जाना जाता है। खड़ी चढ़ाई होने के बावजूद माता के भक्त जय माता दी का नारा लगाते हुए आगे बढ़ते जाते हैं।
सांझीछत : हाथी मत्था पर चढ़ते चढ़ते जब भक्त थकने लगते हैं तब सांझी छत आता है। यह स्थान समतल और ढ़ालुवां है। यहां से माता का मंदिर दिखने लगता है और भक्तों का उत्साह बढ़ जाता है। कदम अपने आप तेजी से आगे बढ़ने लगता है। यहां आकर माता के भक्तों की आँखों से खुशी छलकने लगती है। भक्त माता का जयकारा लगाते हुए झूम उठते हैं।
वैष्णो देवी प्राचीन गुफा : माता के भवन में प्रवेश के लिए वर्तमान में जिस गुफा द्वार एवं निकास द्वार प्रयोग किया जाता है उसका निर्माण 1977 में किया गया। इस फा के पास ही प्राचीन गुफा द्वारा है जिससे होकर भक्त माता के दरबार में पहुंचते थे। यह गुफा काफी संकरी थी अतरू माता के दरबार में आने वाले भक्तों की बढ़ती संख्या को ध्यान में रखते हुए नई गुफा का निर्माण करवाया गया।
माता वैष्णों देवी दर्शन का फल : माता वैष्णो देवी त्रिकुट पर्वत पर धर्म की रक्षा एवं भक्तों के कल्याण हेतु निवास करती हैं। वैष्णो देवी अपने दरबार में आये भक्तों की विनती सुनती हैं। यह अपने भक्तों पर दया एवं करूणा भाव रखता रखती हैं। मान्यता है कि माता के
दरबार में जैसी कामना लेकर भक्त पहुंचता है माता उसकी उसी अनुरूप कामना पूरी करती हैं। नव दम्पति विवाह के पश्चात माता के दरबार में पहुंचकर अपने सुखी दाम्पत्य जीवन का आशीर्वाद मांगते हैं। माता के दरबार में संतान की कामना से आने वाले भक्तों की मुराद पूरी होती है। भगवती वैष्णों की भक्ति से धन एवं दूसरे भौतिक सुख.साधन भी नसीब होता है। जो भक्त सच्चे मन से माता के दरबार में पहुंचता है मात उसे आरोग्य का आशीर्वाद देती है।
वैष्णो देवी आने वाले भक्त : माता वैष्णो देवी के प्रति दिन-प्रतिदिन लोगों की आस्था मजबूत होती जा रही है। माता के बहुत से भक्त अपनी मुराद पूरी होने के बाद भवन के मार्ग में भंडारा करते हैं। माता के दरबार में आने वाले भक्त हसे माता का प्रसाद मानकर ग्रहण करते हैं और जयकारा लगाते हुए आगे बढ़ते जाते हैं। वैष्णो देवी आने वाले भक्तों की संख्या प्रति वर्ष लाखों में होती है। यह तिरूपति के बाद ऐसा तीर्थस्थल है जहां सबसे अधिक श्रद्धालु आते हैं। शारदीय नवरात्रा एवं चैत्र नवरात्रा के अवसर पर यहां बड़ी संख्या में भक्तगण आते हैं। शीत ऋत में जब पहाड़ों पर बर्फ पड़ने लगता है तब तीर्थयात्रियों की संख्या कम हो जाती है वैसे सालो भर यहां दर्शनाथी आते रहते हैं।
गृह निर्माण की मान्यता : भैरो घाटी में बाबा भैरोनाथ के दर्शन के पश्चात लौटते समय रास्ते में लोग पत्थरों से घर बनाते हैं। इस विषय में धारणा यह है कि जो भी भक्त माता का ध्यान करके इस स्थान पर पत्थरों से घर बनाता है उसे मृत्यु पश्चात परलोक में अच्छा घर मिलता है। अगले जन्म भी व्यक्ति के पास अपना मकान होता है। इस मान्यता के कारण लोग रास्ते के किनारे बिखरे पत्थरों से घर बनाते हैं।
मंदिर में जब भी बैठे तो ध्यान रखें : ईश्वर की साक्षात् अनुभूति, उपासना और आराधना के लिए मंदिर बनाए जाते हैं और बनाए भी गए हैं। सनातन धर्मावलम्बी भी अपने घरों में अलग से पूजा घर बनाते हैं या फिर अलग से स्थान रखा जाता है। इस पूजा घर या स्थान में देवी- देवताओं की प्रतिमाएं या चित्र रखे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि मंदिरों में ईश्वर साक्षात् रूप में विराजित होते हैं। किसी भी मंदिर में भगवान के होने की अनुभूति प्राप्त की जा सकती है। भगवान की प्रतिमा या उनके चित्र को देखकर मन शांत हो जाता है और आत्मीय सुख प्राप्त होता है। मंदिर में भगवान का ध्यान लगाने के लिए बैठते समय ध्यान रखना चाहिए कि हमारी पीठ भगवान की ओर न हो। इसे शुभ नहीं माना जाता है। मंदिर में कई दैवीय शक्तियां का वास होता है और वहां सकारात्मक ऊर्जा हमेशा सक्रीय रहती है। यह शक्ति या ऊर्जा देवालय में आने वाले हर व्यक्ति के लिए होती है। यह हम पर ही निर्भर करता है कि हम वह शक्ति कितनी ग्रहण कर पाते हैं। इन सभी शक्तियों का केंद्र भगवान की प्रतिमा ही होती है जहां से यह सभी सकारात्मक ऊर्जा संचारित होती रहती है। ऐसे में यदि हम भगवान की प्रतिमा की ओर पीठ करके बैठ जाते हैं। तो यह शक्ति प्राप्त नहीं हो पाती। भगवान की ओर पीठ न करने का एक धार्मिक कारण भी है। ईश्वर को पीठ दिखाने का अर्थ है उनका अपमान करना । यही कारण है कि भगवान को पीठ नहीं दिखाना चाहिए। आम तौर पर आपने देखा होगा कि चाहे मंदिर हो या देवालय या फिर दरगाह, श्रद्धालु निकलते वक्त मुंह करके ही द्वार से बाहर निकलते हैं।