अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 21 फरवरी को हर साल मनाया जाता है। यह दिवस देश और दुनिया में भाषाई, सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता व बहुभाषिता को प्रोत्साहन देने के साथ मातृभाषाओं से जुड़ी जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से मनाया जाता है।
इसी कोष्टिगत रखते हुए अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की वर्ष 2024 की थीम बहुभाषी शिक्षा अंतर – पीढ़ीगत शिक्षा का एक स्तंभ है रखा गया है। यूनेस्को के मुताबिक देश और दुनिया में 40 प्रतिशत आबादी को उस भाषा में शिक्षा प्राप्त नहीं है जिसे वे बोलते या समझते हैं। फिर भी, बहुभाषी शिक्षा में इसके महत्व की बढ़ती समझ के साथ प्रगति हो रही है, विशेषकर प्रारंभिक स्कूली शिक्षा में, और सार्वजनिक जीवन में इसके विकास के प्रति अधिक प्रतिबद्धता के साथ। आज, 250 मिलियन बच्चे और युवा अभी भी स्कूल नहीं जाते हैं और 763 मिलियन वयस्क बुनियादी साक्षरता कौशल में निपुण नहीं हैं।
मातृभाषा शिक्षा सीखने, साक्षरता और अतिरिक्त भाषाओं के अधिग्रहण का समर्थन करती है। अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस प्रत्येक भाषा की गरिमा को स्वीकार करने लिए मनाया जाता है। यह दिवस हमको इस बात का ध्यान दिलाता है कि भाषा अभिव्यक्ति का साधन मात्र नहीं है यह सांस्कृतिक सेतु भी बनाती है।
यूनेस्को द्वारा दुनिया भर के विभिन्न देशों में उपयोग की जाने वाली (पढ़ी लिखी और बोली जाने वाली ) 7 हजार से अधिक भाषाओं की पहचान की गई है। इसी बहुभाषीवाद को मनाने के लिए 21 फरवरी का दिन चुना गया है। यूनेस्को के मुताबिक दुनियाभर में 6000 भाषाएं बोली जाती हैं। यूनेस्को अनुसार वर्तमान में कम से कम 2680 देशी भाषाओं के लुप्त होने का खतरा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लगभग दो हजार भाषाएं या बोलिया बोली जाती हैं। इनमें से 42.2 करोड़ लोगों की मातृभाषा हिंदी है। यह सही है की भाषाओं की दृष्टि से भारत एक समृद्ध देश है। उत्तर भारत के राज्यों को छोड़कर देश में जितने भी राज्य है वहां की मातृ भाषा हिंदी नहीं है हालाँकि हिंदी को हमने राष्ट्र भाषा के रूप में स्वीकारा है। बंगाल में बंगला, असम में असमी, कर्णाटक में कन्नड़, तमिलनाडु में तमिल, केरल में मलयालम आंध्र तेलगु और उड़ीसा में उड़िया का बोलबाला है। कुछ अन्य राज्यों की भाषा भी वहां की स्थानीय भाषा है और वहां हिंदी नहीं बोली जाती ।
आजादी के बाद यदि हमने अपनी निज भाषा के विकास पर ध्यान दिया होता तो आज हिंदी सम्पूर्ण देश में सर्वत्र मातृ भाषा के रूप में अपना स्थान बना लेती । हमारी गुलाम मानसिकता का ही यह परिणाम था की हिंदी मातृ भाषा का अपना दर्जा हासिल नहीं कर पाई। क्षेत्रीय भाषाओँ से हमारा कतई विरोध नहीं है। यदि देश के नागरिक अपनी स्थानीय भाषा को मातृ भाषा के रूप में स्वीकारते है तो यह उनका जन्मसिद्ध अधिकार है।
हमारा विरोध तो विदेशी भाषा से है जिसने हिंदी को आगे नहीं बढ़ने दिया। आज आवश्यकता इस बात की कि हम विश्व मातृ भाषा दिवस जरूर मनाएं लेकिन हिंदी को उसका हक अवश्य दिलाये। दक्षिण के प्रदेश अपनी निज या भाषा को अपनाये इसमें किसी को आपत्ति नहीं है मगर राष्ट्रभाषा के स्थान पर अंग्रेजी को अपनाये यह हमे किसी भी हालत में स्वीकार नहीं है। वे तमिल, कनड या बंगला को अपनाये हमे खुशी होगी मगर हिंदी के स्थान पर अंग्रेजी थोपे तो यह बर्दाश्त नहीं होगा ।
आज आवश्यकता इस बात की है की हम देश की मातृ और जन भाषा के रूप में हिंदी को अंगीकार करे । अपनी अपनी निज भाषा के साथ हिंदी को स्वीकार कर देश प्रगति पथ और एक सूत्र में पिरोने के लिए अपने स्वार्थ त्यागे और देश के प्रति अपनी अगाध श्रद्धा का परिचय दें। अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस की सार्थकता इसीमें है कि हम अपनी क्षेत्रीय भाषाओँ की अस्मिता को स्वीकार करने के साथ हिंदी को व्यापक स्वरुप प्रदान कर देश को एक नई पहचान दें। यह देश की सबसे बड़ी सेवा होगी।
बालमुकुन्द ओझा