मौजूदा दौर में अपने-अपने कार्यक्षेत्रों में स्मार्टफोन, लैपटॉप, कंप्यूटर आदि इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस का इस्तेमाल करना जरूरी हो गया है, लेकिन अधिकता (प्रतिदिन 4 घंटे से ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस का इस्तेमाल) नुकसानदेह है. ऐसी डिवाइसेस के इस्तेमाल से जो नीली किरणें (ब्लू रेज) निकलती हैं, उनका आंखों पर दुष्प्रभाव पड़ता है, जैसे- आंखों में सूखापन या ड्राइनेस, नेत्रों में भारीपन व जलन होना, सिरदर्द या सिर में भारीपन महसूस होना, आंखों में खुजली होना आदि.
इन उपायों से सूखापन होगा दूर कंप्यूटर व लैपटॉप पर लगातार कई घंटों तक कार्य करने वाले लोगों की आंखों में सूखापन (ड्राइनेस) की समस्या, जलन, भारीपन और कभी-कभी सिरदर्द के लक्षण सामने आते हैं. इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस के इस्तेमाल के समय व्यक्ति लगातार इनके स्क्रीन पर नजर गड़ाये रखता है. जब फुरसत पाकर वह अचानक कहीं दूसरी ओर देखता है, तब उसकी आंखों के आगे अंधेरा या फिर धुंधलापन छा जाता है. ऐसी समस्या को मेडिकल भाषा में कंप्यूटर विजन सिंड्रोम कहा जाता है, किंतु कुछ सुझावों पर अमल कर आप उपरोक्त समस्याओं से बचे रह सकते हैं.
अपनाएं 20-20-20 का नियम
इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस पर काम करने वाले सभी लोगों के लिए 20-20-20 का नियम अत्यंत लाभप्रद है. इसका आशय है कि अगर आप स्क्रीन को 20 मिनट तक देखते हैं, तो फिर आपको 20 सेकंड के लिए लगभग 20 फुट दूर वस्तुओं को देखना चाहिए. इस नियम पर अमल करने से जहां इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस से निकलने वाली किरणों से राहत मिलती है, तो वहीं नेत्रों संबंधी समस्याओं को दूर करने में मदद मिलती है.
कमरे की रोशनी को धीमी रखें स्मार्टफोन, लैपटॉप और कंप्यूटर पर काम करते समय एवं टेलीविजन देखते समय कमरे की लाइट को जितना आप धीमा रखेंगे, उतना ही आंखों लिए यह लाभप्रद रहेगा. इसके लिए कम लाइट वाले बल्बों का इस्तेमाल करना उपयुक्त रहेगा. पलकों को जल्दी-जल्दी झपकाएं
आमतौर पर एक मिनट में व्यक्ति लगभग 15 से 20 बार पल कझपकाता है, लेकिन जब आप कंप्यूटर, लैपटॉप और मोबाइल फोन आदि पर कार्य करते हैं, तो उस समय नजरें इन डिवाइसेस के स्क्रीन पर केंद्रित रहती हैं. इस कारण लोग आंखों को ज्यादा समय तक खुला रखने का प्रयास करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पलक झपकाने के अंतराल में कमी आ जाती है. यह स्थिति कालांतर में आंखों में सूखापन (ड्राइनेस) की समस्या बढ़ाती है. आंखों पर पड़ने वाले अनावश्यक दबाव को दूर करने के लिए पलकों को जल्दी- जल्दी झपकाने की आदत डालें.
एंटी ग्लेयर लेंस का इस्तेमाल
जो लोग काफी देर तक कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठकर काम करते हैं या स्मार्टफोन देखते रहते हैं, वे नेत्र विशेषज्ञ से परामर्श लेकर एंटी ग्लेयर लेंस का इस्तेमाल करें. इनके इस्तेमाल से इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस से निकलने वाली किरणों का दुष्प्रभाव आंखों पर कम पड़ता है.
लुब्रिकेटिंग ड्रॉप लाभप्रद
इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस के कारण आंखों पर पड़ने वाले अतिरिक्त दबाव को दूर करने और आंखों में ड्राइनेस की समस्या से बचाव में ‘आर्टिफिशियल टीयर्स’ राहत मिलती है. अनेक लुब्रिकेटिंग आइ ड्रॉप उपलब्ध हैं, जिन्हें आप नेत्र विशेषज्ञ के परामर्श से आंखों में डाल कर ड्राइनेस और इससे संबंधित अन्य समस्याओं से राहत पा सकते हैं.
देर रात तक न चलाएं स्मार्टफोन
देर रात फोन के इस्तेमाल से स्क्रीन की रोशनी रेटिना को सीधे प्रभावित करती हैं. इस कारण कालांतर में आंखों की रोशनी कम होने लगती है.
इन बातों पर दें ध्यान
– आपकी कंप्यूटर स्क्रीन का लेवल आंखों के स्तर से नीचे होना चाहिए.
-स्मार्टफोन व अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस का इस्तेमाल अंधेरे में न करें, क्योंकि ऐसा करने से आंखों पर दबाव व खिंचाव (स्ट्रेन) पड़ता है.
– कंप्यूटर या अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस पर काम करते समय लगभग एक घंटे के अंतराल पर आंखों को साफ पानी से धो लें.
– सोने से लगभग एक घंटे पहले इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस बंद कर देनी चाहिए, D आंखों व इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस के बीच लगभग 1 फुट की दूरी रखें. पर्याप्त नींद (7 घंटे) लें. नींद आपकी आंखों की कार्यप्रणाली को सुचारु रूप से संचालित करने में सहायक है.
– धूल-मिट्टी व सूरज की अल्ट्रावायलेट किरणों से बचने के लिए बाहर निकलते समय धूप का चश्मा लगाएं.
-धूम्रपान से बचें. यह आंखों में ड्राइनेस की वजह बन सकता है.
डायबिटिक रेटिनोपैथी
जो लोग मधुमेह (डायबिटीज) से ग्रस्त हैं, उनमें कालांतर में डायबिटिक रेटिनोपैथी की समस्या से ग्रस्त होने का जोखिम कहीं ज्यादा होता है. रक्त शर्करा के एक अर्से तक अनियंत्रित रहने से ऐसे लोगों की रेटिना पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. लक्षण: धुंधलेपन की समस्या, रंगों को पहचानने में असमंजस, काले धब्बे दिखना, हवा में तैरते धागे दिखना. परामर्श: डायबिटीज के मरीजों को उपरोक्त लक्षणों के सामने आने पर शीघ्र ही नेत्र विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए, ऐसे लोगों को डॉक्टर के परामर्श से नियमित रूप से जांचें कराते रहना चाहिए, इन दिनों डायबिटिक रेटिनोपैथी के मामलों में दृष्टि के सुधरने (विजन इंप्रूवमेंट) की संभावना अतीत की तुलना में कहीं ज्यादा बढ़ गयी हैं. रेटिना को जितना नुकसान हो चुका है, वह कुछ हद तक ‘रिवर्स’ हो सकता है.
खान-पान व आंखों की सेहत
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के अनुसार, विटामिन ए की कमी से प्रतिवर्ष दुनियाभर में लगभग 2 लाख, 50 हजार से 5 लाख बच्चे अंधेपन के शिकार हो जाते हैं. विटामिन ए की कमी से रतौंधी नामक रोग हो जाता है.
– विटामिन ए टमाटर, गाजर, शकरकंदी, शिमला मिर्च, कददू, हरी पत्तेदार सब्जियों, डकों लिवर ऑयल और फलों आदि में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है.
– बादाम ओमेगा-3 फैटी एसिड और एंटीऑक्सडॉट से परिपूर्ण है, जो आंखों की सेहत के लिए फायदेमंद है.
– आंवला में पर्याप्त मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है, जो आंखों के लिए लाभप्रद है. आंवले के अलावा खट्टे फलों जैसे संतरा, नीबू आदि में भी विटामिन सी पाया जाता है.
– दूध और इससे निर्मित उत्पादों को भी आहार में लें. आहार में सोयाबीन को भी वरीयता दें. D डॉक्टर के परामर्श ‘ओमेगा-3 फैटी एसिड के सप्लीमेंट्स भी ले सकते हैं.
नेत्र व्यायाम
आंखें झपकाना: पहले आंखों को तेजी से 10 सेकेंड के लिए झपकाएं और फिर 20 सेकेंड आंखें बंद कर लें. इस दौरान अपना ध्यान गहरी सांस लेने पर केंद्रित करें. इस प्रक्रिया को पांच बार दोहराया जा सकता है.
अभभाविक ध्यान दें
पांच साल से कम उम्र के बच्चों को जहां तक संभव हो, स्मार्टफोन या इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस से दूर रखना चाहिए. ऐसा इसलिए, क्योंकि छोटे बच्चों में दूर की ‘आइ साइट’ समुचित रूप से विकसित नहीं हो पाती. ऐसे बच्चे अगर सेलफोन का इस्तेमाल करेंगे तो उनकी आंखों पर स्ट्रेन पड़ेगा, जिसके वजह से उनकी दूर की रोशनी विकास में बाधा आयेगी.