प्राचीन काल में यूनानी चिकित्सक गंध से पहचानते थे बीमारी
1971 में नोबेल पुरस्कार विजेता लाइनस पॉलिंग ने सांस में 250 केमिकल की पहचान की थी
डबलिन (आयरलैंड), एजेंसी। इंसान के शरीर से प्रति सेकेंड सैकड़ों तरह के केमिकल हवा में उत्सर्जित होते रहते हैं। अधिक वाष्प दबाव के कारण ये हवा में आसानी में मिल जाते हैं, जिससे प्रत्येक व्यक्ति के शरीर की एक विशेष गंध होती है । अस्वस्थ होने पर शरीर की अलग गंध होती है और स्वस्थ होने पर अलग। ये इंसान के शरीर का विशेष गंध या खुशबू ही है जो इस बात का सुराग देते हैं कि हम कौन हैं और कितने स्वस्थ हैं।
प्राचीन काल में सूंघकर पहचानते थे बीमारी : प्राचीन काल से ही हमें मालूम है कि अस्वस्थ होने पर हमारे शरीर की एक अलग तरह की गंध होती है। हालांकि आज के समय में ब्लड टेस्ट पर डॉक्टरों और मरीजों को भरोसा होता है। वहीं प्राचीन यूनानी चिकित्सक बीमारियों के निदान के लिए गंध का उपयोग करते थे। आपकी सांस का एक झोंका लेकर वह बता सकते थे। कि आपको फेटोर हेपेटिकस (मतलब खराब लीवर) है, तो इसका मतलब होता था कि आप लीवर की बीमारी की ओर बढ़ सकते हैं।
कुछ वीओसी विशेष गंध वाले कुछ गंधहीन होते हैं: वर्ष 1971 में, नोबेल पुरस्कार विजेता रसायनशास्त्री लाइनस पॉलिंग ने सांस में 250 विभिन्न केमिकल की पहचान की थी। इनको वाष्पशील कार्बनिक यौगिक या वीओसी कहा जाता है। इस खोज के बाद अन्य वैज्ञानिकों ने इंसान की सांस में सैकड़ों और वीओसी की खोज की है। इनमें से कई वीओसी में विशेष तरह की गंध होती है, लेकिन कुछ गंधहीन होते हैं।
पौधे, कीट और पशुओं में भी होता है वीओसी : शरीर में वीओसी का एकमात्र स्रोत सांस ही नहीं है। यह त्वचा, मूत्र और मल से भी उत्सर्जित होते हैं। वीओसी का उपयोग पौधों, कीड़ों और जानवरों द्वारा संचरण के रूप में भी होता है। पौधे, शाकाहारी जीवों, पौधों और उनके प्राकृतिक शत्रुओं जैसे हानिकारक बैक्टीरिया सहित अन्य जीवों के साथ निरंतर वीओसी से संपर्क में रहते हैं।
सांस की गंध से मधुमेह की पहचान : यदि किसी व्यक्ति की सांस की हवा मीठापन या फलों की गंध होती डी. तो चिकित्सकों का निष्कर्ष होता था कि पाचन तंत्र में शर्करा टूट नहीं रही है, और उस व्यक्ति को मधुमेह है। विज्ञान ने भी साबित कर दिया है कि प्राचीन यूनानी सही थे। मधुमेह तथा संक्रामक रोगों सहित कई अन्य बीमारी में भी सांस से अलग तरह की गंध आती है। (वृत्तसंस्था)