भारत आज अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक बड़ी ताकत है। इसमें स्वदेशी क्रायोजेनिक तकनीक का अहम योगदान है। लेकिन एक समय था कि अमेरिका सहित दुनिया के ताकतवर देश भारत को क्रायोजेनिक तकनीक नहीं देना चाहते थे। ऐसे में भारत ने अपने विज्ञानियों की मेधा के दम पर स्वदेशी क्रायोजेनिक तकनीक विकसित की और ऐसी क्षमता रखने वाले चुनिंदा देशों की कतार में शामिल हो गया।
क्रायोजेनिक तकनीक : क्रायोजेनिक का मतलब कम तापमान है। क्रायोजेनिक इंजन आक्सीडाइजर के तौर पर लिक्विड आक्सीजन का और ईंधन के तौर पर लिक्विड हाइड्रोजन का इस्तेमाल करता है। आक्सीजन को 183 डिग्री सेल्सियस से नीचे लिक्विड के रूप में रखा जा सकता है जबकि हाइड्रोजन को लिक्विड के रूप में रखने के लिए तापमान -253 से नीचे होना चाहिए। लिक्विड आक्सीजन बेहद तेजी से प्रतिक्रिया करती है और बहुत तेजी से जलती है। ऐसे में इसका इस्तेमाल भारी पेलोड ले जाने के लिए ईंधन के तौर पर किया जा सकता है।
क्या है क्रायोजेनिक : इंजन क्रायोजेनिक इंजन बेहद कुशल प्रोपल्सन सिस्टम है। इसका इस्तेमाल राकेट के ऊपरी चरणों में किया जाता है। ये राकेट को एक खास आवेग देता है, जिससे उसकी पेलोड क्षमता बढ़ जाती है। टैकों की क्षमता 17,000 किलोग्राम से अधिक ईंधन की होती है और यह कम से कम 720 सेकेंड तक इंजन को ऊर्जा दे सकते हैं। आम तौर पर ये इंजन ईंधन के तौर पर लिक्विड आक्सीजन और लिक्विड हाइड्रोजन का इस्तेमाल करते हैं। क्रायोजेनिक ईंधन के इस्तेमाल से राकेट इंजन की क्षमता बढ़ जाती है। और वह बेहतर प्रदर्शन करता है।
चुनिंदा देशों के पास है तकनीक : भारत अपना क्रायोजेनिक इंजन विकसित करने वाला दुनिया का छठां देश है। अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और जापान के पास पहले से क्रायोजेनिक इंजन बनाने की क्षमता थी।
क्रायोजेनिक टेक्नोलाजी खरीदने का प्रयास : 20 वीं सदी के आठवें दशक में भारत ने अपने जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लांच व्हीकल (जीएसएलवी) राकेट के लिए क्रायोजेनिक इंजन खरीदने का प्रयास किया। सौदा पक्का हुआ तत्कालीन सोवियत संघ की अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस की व्यावसायिक शाखा ग्लैवकोस्मोस के साथ। हालांकि अमेरिका ने मिसाइल टेक्नोलाजी कंट्रोज रिजीम (एमटीसीआर) के उल्लंघन की चिंताओं का हवाला देते हुए सौदे का विरोध किया।
इंजन बनाने का फैसला : इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने फैसला किया कि भारत अपना क्रायोजेनिक इंजन बनाएगा। हालांकि उस समय इसरो को स्पेस कंपोनेंट बेचने पर प्रतिबंध था। अप्रैल 1994 में क्रायोजेनिक तकनीक कार्यक्रम की शुरुआत हुई। इस कार्यक्रम के लिए 300 करोड़ रुपये का बजट रखा गया।
सीई-20 क्रायोजेनिक इंजन : चंद्रयान- 3 मिशन के लिए सीई- 20 क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल किया गया था। सीई- 20 गैस जेनरेटर साइकल के साथ भारत का पहला क्रायोजेनिक इंजन है और यह इसरो द्वारा बनाया गया सबसे बड़ा क्रायोजेनिक इंजन भी है।